Friday, November 23, 2012

चाँदनी


कबसे बैठे थे इस झील के किनारे
एक चाँद लेकर चाँदनी के ख्वाब में

एक दुजेमें मिटती लेहरोंको समायी हुई झील
लगती है खुद एक खयाल जैसी...
किनारेको किनारेसे जोडी हुई झील
जहाँ मिलता है रास्ता अपने आपसे
ढुंढते हुए किसी रोशनीको...

एक खयाल रात की रोशनी में डुबा 
चमकता रहा उस पार किनारेके
और हम देखते रहे आसमाँ की तरफ
करते गिनती चाँदनी की !