कबसे
बैठे थे इस झील के किनारे
एक
चाँद लेकर चाँदनी के ख्वाब में
एक
दुजेमें मिटती लेहरोंको समायी हुई झील
लगती
है खुद एक खयाल जैसी...
किनारेको
किनारेसे जोडी हुई झील
जहाँ
मिलता है रास्ता अपने आपसे
ढुंढते
हुए किसी रोशनीको...
एक खयाल रात
की रोशनी में डुबा
चमकता
रहा उस पार किनारेके
और
हम देखते रहे आसमाँ की तरफ
करते
गिनती चाँदनी की !