Friday, November 23, 2012

चाँदनी


कबसे बैठे थे इस झील के किनारे
एक चाँद लेकर चाँदनी के ख्वाब में

एक दुजेमें मिटती लेहरोंको समायी हुई झील
लगती है खुद एक खयाल जैसी...
किनारेको किनारेसे जोडी हुई झील
जहाँ मिलता है रास्ता अपने आपसे
ढुंढते हुए किसी रोशनीको...

एक खयाल रात की रोशनी में डुबा 
चमकता रहा उस पार किनारेके
और हम देखते रहे आसमाँ की तरफ
करते गिनती चाँदनी की !

4 comments:

  1. बहुत हि उमदा और अदभूत पंक्तीया है..! इन पंक्तियो के भाव को समझाने के लिये भावविभोर होना पडेगा. खूब लिखा है शीतल! अंतर्मन को आसमान से जोडती हुई पंक्तीया..! लिखते रहिये इसी भाव एवं भाषा के साथ. शुभकामनाओ सहित.

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  3. 'किनारेको किनारेसे जोडी हुई झील' This is what I was talking about..very uncommon...:)

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