कितना कुछ सोचते हैं हम जिंदगी के बारेमें,
अपने बारेमें, दुसरों के बारेमें...
लगता है, हर किसी का अपना एक कारवाँ चल रहा है,
दुसरोंसे जुडी हजारों कडियाँ लेकर...
अपनी अलग थलग मगर एकल गतीसे,
न जाने कितनी दिशाओं की तरफ...
हम संगहीन होकर भी, साथ हैं |
किसी ना किसी कारवें का हिस्सा हैं |
अकेले चलते हुए भी अकेलेपन का एहसास नही |
जोडनेवाली कडियाँ किसी अनुबंध जैसी हैं |
क्या ये जुडना ही कारवों की तलाश है ?
अपने बारेमें, दुसरों के बारेमें...
लगता है, हर किसी का अपना एक कारवाँ चल रहा है,
दुसरोंसे जुडी हजारों कडियाँ लेकर...
अपनी अलग थलग मगर एकल गतीसे,
न जाने कितनी दिशाओं की तरफ...
हम संगहीन होकर भी, साथ हैं |
किसी ना किसी कारवें का हिस्सा हैं |
अकेले चलते हुए भी अकेलेपन का एहसास नही |
जोडनेवाली कडियाँ किसी अनुबंध जैसी हैं |
क्या ये जुडना ही कारवों की तलाश है ?